500 करोड़ रुपए नोएडा का गगनचुंबी ट्विन टावर अब मलबे की ढेर में तब्दील हो चुका है। एक बटन दबाते ही यह टावर अदृश्य होकर धूल और मिट्टी में बदल गया। ट्विन टावर के साथ ही ढह गए 500 करोड़ रुपए, जो इस टावर को बनाने में खर्च हुए थे। नोएडा प्राधिकरण ने बताया कि ट्विन टावर के मलबे को बर्बाद नहीं किया जाएगा बल्कि इसे नोएडा के सेक्टर 80 ट्रीटमेंट प्लांट में इस्तेमाल योग्य बनाया जाएगा। ट्विन टावर के मलबे से कम से कम 28,000 मीट्रिक टन का निर्माण होगा।
सुप्रीम कोर्ट के ट्विन टावर को ढहाए जाने वाले फैसलों को लेकर आम लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोगों का मानना है कि यह सही फैसला था बल्कि कुछ इस फैसले के विरोध में भी नजर आए। सरकार इस टावर में शहर के बेघर लोगों का पुनर्वास कर सकती थी। इतना पैसा बर्बाद करने के बजाय ट्विन टावर को अस्पताल में बदला जा सकता था।
जमीन को सुपरटेक लिमिटेड ने 25 करोड़ में खरीदा था। इसी के साथ सुपरटेक लिमिटेड ने नोएडा प्राधिकरण से लेआउट मंजूरी प्राप्त करने के लिए 25 करोड़ और दिए थे। साल 2009 में सुपरटेक लिमिटेड ने ट्विन टावर के लिए 8000 वर्ग मीटर जमीन खरीदी थी। साथ ही 46000 वर्ग मीटर जमीन और खरीदी गई जहां आज एमराल्ड कोर्ट के 11 आवासीय टावर खड़े हैं। साल 2009 से 2014 तक ट्विन टावर का निर्माण होता रहा। करोडों रुपए लगाए जा रहे थे। इमारतें अभी बन ही रही थीं कि साल 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भवन नियमों के उल्लंघन के लिए ट्विन टावर को ढहाने का आदेश दे दिया। सुपरटेक लिमिटेड ने कहा कि हमने एपेक्स और सेयेन नाम के इन दो टावरों में स्टील, सीमेंट, रेत, लेबर, लोन और अन्य खर्चों सहित निर्माण सामग्री में 450 करोड़ रुपए का खर्च किया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद सुपरटेक लिमिटेड का 500 करोड़ रुपए बर्बाद हो गया।
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