पिपलियामंडी (मंदसौर)। लगभग तीन हेक्टेयर (12 बीघा) में फैले विशाल वट वृक्ष को इसी रूप में देखते-देखते गांव की कई पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन अब यह भी अपनी जड़ें छोड़ने लगा है। पहले जहां पेड़ के पूरे क्षेत्र में धूप तक नहीं पहुंच पाती थी, अब बीच-बीच में कई जगह धूप आने लगी है। तने भी कमजोर व खोखले होने लगे हैं। जड़ों में नई कोपल नहीं फूट रही हैं। वट वृक्ष को बचाने के लिए इसके चारों तरफ मिट्टी की पाल बनाइ जा रही है ताकि पेड़ को ज्यादा से ज्यादा पानी मिल सके। महू-नीमच राजमार्ग पर नीमच की ओर चलते समय मंदसौर से 13 किमी दूर मुख्य मार्ग से लगभग दो किमी अंदर स्थित गांव थड़ोद है। यहां सैकड़ों वर्ष पुराना लगभग तीन हेक्टेयर में फैला वट वृक्ष (बरगद का पेड़) हैं। यह वर्षों तक छांव से लोगों, पशु-पक्षियों को तृप्त करता रहा। अब यह बूढ़ा होने लगा है। तने खोखले हो रहे हैं तो जड़ों में नई कोपलें नहीं फूट रही हैं।कम हो रही वर्षा का असर भी इस पर दिख रहा है। इसी वट वृक्ष के आंचल में हजरत गालिब शाह बाबा की दरगाह भी है। दरगाह की देखरेख करने वाले 80 वर्षीय दिलावर शाह बताते हैं कि एक समय वट वृक्ष की डालियां व लताएं इतनी घनी थीं कि दिन के समय भी पेड़ के नीचे अंधेरा जैसा ही रहता था। लोग बाबा की दरगाह पर जियारत करने आने से डरते थे। धूप तो दिखाई ही नहीं देती थी। पेड़ से लगातार निकलती जड़ें जमीन में जाकर तने का रूप ले लेती थीं और इस तरह यह पेड़ फैलता ही गया। अब धीरे-धीरे पानी की कमी व रखरखाव के अभाव में कई जगह से पेड़ का तना सूखने लगा है।अब इनमें नई पत्तियां फूटने की प्रक्रिया भी काफी धीमी हो गई है। हल्का पटवारी अजय रक्षा ने बताया कि वट वृक्ष की तीन हेक्टेयर भूमि दिलावरशाह सहित चार भाइयों के नाम है। वर्षों से उनके परदादा, दादा, पिताजी के नाम यह जमीन चली आ रही है। दिलावर शाह कहते हैं कि हमारे परदादाओं को भी यह जानकारी नहीं है कि यह वट वृक्ष कितना पुराना है, पर 500 वर्ष से ज्यादा पुराना है। बोतलगंज निवासी मुबारिक पटेल ने बताया कि 10 साल पहले तक तो इस वट वृक्ष की देखरेख करने वन विभाग के एक अधिकारी आते रहते थे। उसके बाद कोई नहीं आया है। अभी कुछ दिनों पहले कलेक्टर मनोज पुष्प भी गांव के दौरे पर आए थे, तब उन्होंने इसके संरक्षण के उपाय करने को कहा था।
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