गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री अवार्ड पाने वालों के नाम घोषित किए गए. ऊषा चोमर का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है. ऊषा चोमर राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं और मैला ढोने का काम करती थीं. ऊषा चोमर पद्मश्री अवार्ड मिलने की घोषणा से बेहद खुश हैं.
अपनी पुरानी बातें याद करते हुए ऊषा बताती हैं कि उन्हें कैसे समाज में तिरस्कृत नजरों से देखा जाता था. लोगों के व्यवहार की वजह से कई बार वो यह काम छोड़ना चाहती थीं. लेकिन सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक से जुड़ने के बाद उनकी जिन्दगी बदलने लगी.
बदल गई जिन्दगी
एक वक्त में मैला ढोने के काम से ऊब जाने वाली ऊषा बताती हैं कि इसी काम ने उन्हे समाज में नई पहचान दी है. आज लोग उसे इज्जत की नजरों से देखते हैं. वो महिलाओं के लिए उदाहरण बन गई हैं.
ऊषा चोमर मुस्कुराते हुए कहती हैं कि इस काम की वजह से वो पांच देशों की यात्रा कर आईं, कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की है.
पहले जिस समाज में किसी को छू लेना भी उनके लिए अपराध था, आज वहीं के लोग उन्हें अपने घर पर बुलाते हैं. शादी सामारोह में उनका विशेष स्वागत करते हैं. आज वो मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ भी कर पाती हैं.
अवॉर्ड के लिए चुने जाने पर ऊषा चोमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद पीएम मोदी ही दूसरे नेता हैं जिन्होंने सफाई के लिए झाड़ू अपने हाथ में लिया. इसका असर अन्य देशवासियों पर भी हुआ है.
10 साल की उम्र में हो गई थी शादी
वहीं, निजी जिन्दगी के बारे में भी ऊषा ने बात की. उन्होंने बताया कि जिन्दगी पहले इतनी खुशहाल नहीं थी. मात्र 10 साल की उम्र में ऊषा की शादी हो गई. जब वो अपने ससुराल पहुंची तो वहां भी मैला ढोने के काम में लगा दिया गया. जैसे कि वो अपने मायके में भी करती थीं. हालांकि, मन के अंदर एक झिझक थी लेकिन कर ही क्या सकती थी.
डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने दिखाया रास्ता
साल 2003 में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक अलवर आए. वो मैला ढोने वाले परिवारों से मिलकर काम करना चाहते थे. लेकिन कोई महिला समूह उनसे मिलने को तैयार नहीं थी. किसी तरीके से बातचीत कर एक महिला समूह को तैयार किया गया.
महल चौक इलाक़े में महिलाएं इकट्ठा हुईं. समूह का नेतृत्व कर रही थीं ऊषा चोमर. इस मुलाकात ने उनकी जिन्दगी बदल दी. वो पापड़ और जूट से संबंधित काम करने लगीं. साल 2010 तक उन्होंने अलवर की सभी मैला ढोने वाली महिलाओं को अपने साथ जोड़ लिया. इस काम की वजह से उनकी आमदनी बढ़ने लगी.
आज अलवर की महिला नहीं ढोती हैं मैला
ऊषा चोमर बताती हैं कि आर्थिक मजबूती ने सभी महिलाओं का जीवन बदल दिया है. आज उनके जैसी कई महिलाएं सम्मान के साथ अपना जीवन निर्वहन कर रही हैं और ये सब कुछ हुआ बिंदेश्वर पाठक की वजह से. अब अलवर में कोई महिला, मैला नहीं ढोती है.
अगली पीढ़ी नहीं ढोएगी मैला
ऊषा कहती हैं कि जब पद्मश्री की घोषणा हुई तो उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया. एक बेटा शाम में ही घर लौट गया था. दूसरा बेटा और पति रात 11.00 बजे के करीब मजदूरी करके घर लौटे. एक बेटी है जो ग्रेजुएशन के तीसरे साल की पढ़ाई कर रही है. ऊषा खुश हैं, क्योंकि उनकी अगली पीढ़ी को मैला नहीं ढोना पड़ रहा है.
Comments
Post a Comment