मुंबई की एक अदालत ने नागरिकता से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं है। अदालत ने इस मामले में 35 साल की महिला को देश के अंदर अवैध तरीके से प्रवेश करने का दोषी ठहराते हुए एक साल कैद की सजा सुनाई है।
'आधार-सेल डीड नागरिकता साबित करने के लिए काफी नहीं'
मुंबई में दहिसर (पूर्व) इलाके में रहने वाली ज्योति गाजी उर्फ तस्लीमा रबीउल को मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने पासपोर्ट रूल्स (भारत में प्रवेश) ऐंड फॉरेनर्स ऑर्डर के तहत दोषी करार दिया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'यह गौर करना उचित होगा कि पैन कार्ड, आधार कार्ड या सेल डीड जैसे दस्तावेज किसी व्यक्ति की नागरिकता को साबित करने के लिए काफी नहीं हैं। किसी की नागरिकता को साबित करने के लिए आम तौर पर जन्मतिथि का प्रमाण, पैदा होने की जगह, माता-पिता का नाम, उनके पैदा होने का स्थान और नागरिकता का सबूत होना जरूरी है। कई बार दादा-दादी के जन्म का स्थान भी उपयुक्त होता है।'
आरोपी पर सबूत पेश करने की बाध्यता: कोर्ट
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी के ऊपर सबूत या दस्तावेज पेश करने की बाध्यता है, जिससे यह साबित हो सके कि वह विदेशी नागरिक नहीं है। रबीउल ने दावा किया कि बांग्लादेश की रहने वाली है और 15 साल पहले शहर में आई थी। अदालत ने इस पर कहा कि यह साबित हो चुका है कि वह एक बांग्लादेशी नागरिक है और उसने बिना किसी वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज का इस्तेमाल करते हुए भारत में प्रवेश किया है।
महिला होने के आधार पर छूट की दलील खारिज
अदालत ने महिला होने के आधार पर रबीउल को छूट देने की दलील को खारिज करते हुए कहा, 'हमारे मुताबिक अगर इस तरह की ढील दी जाती है, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा और यहां तक कि भारतीय नागरिकों के वैध अधिकारों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि ऐसी अनधिकृत प्रविष्टियों के कारण विदेशी भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ बन सकते हैं।'
'सजा काटने के बाद देश से बाहर किया जाए'
अदालत ने निर्देश दिया है कि एक साल की सजा काटने के बाद रबीउल को देश से बाहर भेजा जाए। 2009 में रबीउल समेत 16 अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। बाकी आरोपी इस मामले में फरार हैं और केवल रबीउल को मुकदमे का सामना करना पड़ा।
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