टी.एन. शेषन: दबंग चुनाव आयुक्त जिन्होंने देश के भ्रष्ट नेताओं पर नकेल कस दी


एक समय था जब देश में बैलट पर बुलट भारी पड़ता था यानी बंदूक की नोक पर वोटों की पेटियों को लूटना आम बात थी। भारत की चुनावी प्रक्रिया में हर तरह की बुराई थी। ऐसे में देश को एक ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त मिलता है, जो पूरी चुनाव व्यवस्था को बदलकर रख देता है। बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं को नकेल कस देता है। उस मुख्य चुनाव आयुक्त का नाम है टी.एन.शेषन जो अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन के मौके पर उनके जीवन और योगदानों के बारे में जानना जरूरी है।


आज अगर देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र माहौल में चुनाव हो पाता है तो इसका श्रेय टी.एन.शेषन को जाता है। उनका रविवार 10 नवंबर, 2019 को निधन हो गया। देश के दबंग चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले टी.एन.शेषन नौकरशाही में भी सुधार के जनक थे। ईमानदारी और कानून के प्रति अपनी निष्ठा की वजह से वह बहुतों को खटकते भी थे। इस वजह से उनके विरोधी उनको सनकी और तानाशाह तक भी कहते थे। लेकिन वह व्यवस्था में क्रांति लाने वाले इंसान, मेहनती, सक्षम प्रशासक, योग्य नौकरशाह, बुद्धीजीवियों और मध्य वर्ग के नायक थे। चुनाव सुधार के लिए किए गए उनके कामों के बारे में तो पता है ही लेकिन उनके जीवन की बहुत सी बातें लोगों को अभी पता नहीं है। आइए आज हम आपको उनके जीवन के कुछ ऐसे ही पहलुओं के बारे में बताते हैं...


टी.एन.शेषन का जन्म 15 दिसंबर, 1932 को पलक्कड़ (केरल) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने स्कूली पढ़ाई बेसल इवैंजेलिकल मिशन हायर सेकंड्री स्कूल से की और इंटरमीडिएट गवर्नमेंट विक्टोरिया कॉलेज, पलक्कड़ से। उन्होंने मद्रास क्रिस्चन कॉलेज से फिजिक्स में ग्रैजुएशन किया। उन्होंने चार साल के कोर्स को तीन सालों में ही पूरा कर लिया। साथ ही उन्होंने मास्टर की भी डिग्री कर ली।

एक वैज्ञानिक का प्रशासनिक सेवा में करियर
60 के शुरुआती दशक में वैज्ञानिकों के लिए जॉब के मौके बहुत कम थे। इस वजह से उन्होंने मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में ही 1952 से पढ़ाना शुरू कर दिया। वहां उन्होंने तीन सालों तक पढ़ाया लेकिन सैलरी कम होने की वजह से उसे भी छोड़ दिया। मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में पढ़ाने के दौरान वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करते रहे। 1953 में उन्होंने पुलिस सेवा परीक्षा में टॉप किया और 1954 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए होने वाली परीक्षा क्लियर की। 1955 में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में ट्रेनी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की।शुरुआत में ही साबित हुए दबंग प्रशासक
शेषन की पहली तैनाती तमिलनाडु के मदुरई जिले के डिंडीगुल में सब कलेक्टर के तौर पर हुई। वहां उन्होंने सब कलेक्टर के अधिकारक्षेत्र से बाहर के प्रभारों को भी संभाला। अपनी पोस्टिंग के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने मजबूत प्रशासक की अपनी छवि बनाई। कहानी कुछ इस तरह से है। हरिजन समुदाय के एक व्यक्ति की कांग्रेस पार्टी की स्थानीय अध्यक्ष से शादी हुई थी। हरिजन पर फंड के घपले का आरोप लगा जिसे टी.एन.शेषन ने गिरफ्तार करवा दिया। उसकी गिरफ्तारी के चंद दिनों बाद एक मंत्री का इलाके का दौरा हुआ। उसने शेषन से हरिजन को छोड़ने की मांग की और उन पर दबाव बनाया। लेकिन टी.एन.शेषन मंत्री के दबाव के आगे नहीं झुके और आरोपी को रिहा नहीं किया।

दुर्भाग्यपूर्ण घटना जो उनके लिए फायदेमंद साबित हुई
1962 में उनका अपने एक सीनियर से झगड़ा हो गया जिस वजह से उनका सचिवालय से ट्रांसफर कर दिया गया। वहां से उनको छोटी बचत कार्यक्रम, पिछड़ा वर्ग कल्याण और महिला कल्याण के विभाग में भेज दिया गया। अंत में उनको शहर का परिवहन निदेशक बना दिया गया। उनकी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा की बातें प्रदेश के तत्कालीन उद्योग और परिवहन मंत्री रामास्वामी वेंकटरमन तक पहुंची। वेंकटरमन ने उनसे भीड़भाड़ वाले शहर की सार्वजनिक बस व्यवस्था को संभालने को कहा। शेषन इस घटना को अपने लिए काफी फायदेमंद बताते हैं। उनका कहना था कि वहां उनको तरह-तरह के लोगों को संभालने का मौका मिला जो उनके भविष्य के करियर में काफी काम आया।


दिल्ली ट्रांसफर और राजीव गांधी से नजदीकी
शेषन का तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से काफी झगड़ा हो गया जिसके बाद वे दिल्ली आ गए और तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के एक सदस्य के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई। अगले दो सालों तक इस पद पर रहे। इसके बाद उनको अंतरिक्ष मंत्रालय का अतिरिक्त सचिव नियुक्त किया गया और इस विभाग में 1980 से 1985 तक रहे। फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आग्रह पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के सचिव बन गए। इस पद पर वह 1985 से 1988 तक रहे। इस दौरान राजीव गांधी से उनकी नजदीकी बढ़ी। वहां से उनको आंतरिक सुरक्षा का सचिव बनाया गया जिस पद पर 1989 तक रहे। राजीव गांधी से उनकी नजदीकी इस बात से पता चलती है कि रक्षा मंत्रालय में सचिव के तौर पर नियुक्ति के 10 महीनों बाद उनको कैबिनेट सचिव बनाया गया। जब राजीव गांधी दिसंबर 1989 में चुनाव हार गए और प्रधानमंत्री नहीं रहे तो टी.एन.शेषन का ट्रांसफर योजना आयोग में कर दिया गया।

मुख्यचुनाव आयुक्त बने
प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में सुब्रमण्यन स्वामी कानून मंत्री थे जो उनके दोस्त थे। सुब्रमण्यन स्वामी ने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद ऑफर किया। उन्होंने शुरू में तो इस ऑफर को ठुकराना चाहा लेकिन उन्होंने पहले राजीव गांधी से मशविरा किया, फिर तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन, अपने बड़े भाई और अपने ससुर से सलाह ली। उसके बाद उन्होंने ऑफर स्वीकार कर लिया और दिसंबर 1990 में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का प्रभार संभाल लिया। इसके बाद उन्होंने देश की चुनाव व्यवस्था में जो सुधार किया, उससे उनका नाम इतिहास में अमर हो गया। उनके चुनावी सुधार कुछ इस तरह से हैं।


चुनाव प्रक्रिया में कानून का सख्ती से पालन
* आचार संहिता को सख्ती से लागू कराया
* सभी मतदाताओं के लिए फोटो लगा पहचान पत्र शुरू कराया
* उम्मीदवारों के खर्चों पर अंकुश लगाया
* चुनाव में पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया को सख्ती से लागू किया

कई भ्रष्ट प्रथाओं को खत्म किया
* मतदाताओं को लुभाने या डराने की व्यवस्था को खत्म किया.
* चुनाव के दौरान शराब और अन्य चीजों के बांटने पर सख्ती से रोक.
* प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर रोक
* जाति या सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं से वोट देने की अपील पर रोक.
* चुनाव प्रचार के लिए धर्म स्थलों के इस्तेमाल पर रोक
* पूर्व अनुमति के बगैर लाउडस्पीकर और तेज आवाज में संगीत पर रोक.


राजनीतिक आकाओं को 'नहीं' कहने की परंपरा शुरू की
जब वह वन और पर्यावरण मंत्रालय में थे तो पर्यावरण मंत्रालय को सरकार का सबसे ताकतवर मंत्रालय बना दिया। सचिव के तौर पर उन्होंने टिहरी बांध और सरदार सरोवर बांध जैसी परियोजनाओं का विरोध किया। भले ही सरकार ने उनको विरोध को दरकिनार कर दिया और परियोजना पर काम को आगे बढ़ाया लेकिन बांध के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया। पर्यावरणविदों के लिए कुछ हद तक यह जीत थी। इसके साथ ही शेषन ने विभागों में 'नहीं' कहने का रुझान शुरू किया।


Comments