महाराष्ट्र: एनसीपी और कांग्रेस के सहयोग से शिवसेना सरकार बनना आसान नहीं, उद्धव ठाकरे की सबसे बड़ी परीक्षा
शिवसेना को आज शाम साढ़े सात बजे तक राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को इस बारे में सूचित करना होगा कि वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने को इच्छुक है कि नहीं। इसके मद्देनजर सोमवार सुबह से दिल्ली और मुंबई में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों दलों की अलग-अलग बैठकों का दौर जारी है।
- महाराष्ट्र में शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के लिए एनसीपी और कांग्रेस का साथ लेकर सरकार बनाना आसान नहीं है
- ठाकरे को शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार बनाने में राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ेगा
- राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने रविवार को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना से सरकार बनाने के बारे में पूछा था
- शिवसेना को आज शाम साढ़े सात बजे तक सूचित करना होगा कि वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने को इच्छुक है कि नहीं
मुंबई
महाराष्ट्र में शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के समर्थन के बाद अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार बनाने में अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ेगा। बीजेपी द्वारा इनकार किए जाने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने रविवार को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना से सरकार बनाने के बारे में पूछा था। शिवसेना को आज शाम साढ़े सात बजे तक राज्यपाल को इस बारे में सूचित करना होगा कि वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने को इच्छुक है कि नहीं। इसके मद्देनजर सोमवार सुबह से दिल्ली और मुंबई में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों दलों की बैठकों का दौर जारी है।
उद्धव ठाकरे ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलकर सरकार बनाने के लिए उनका समर्थन मांगा है। एनसीपी का साफ कहना है कि वह सरकार बनाने के लिए तैयार है बशर्ते चुनाव में उसकी पार्टनर रही कांग्रेस रजामंद हो। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में 56 सीटों के साथ शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। बीजेपी को 105, एनसीपी को 54 तो कांग्रेस को 44 सीटें हासिल हुई हैं।
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एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि क्षेत्रीय नेता उद्धव ठाकरे (59) सत्ता की साझेदारी के लिए हुई खींचतान को लेकर एक राष्ट्रीय पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ खड़े हुए हैं। अब उन्हें एक नेता के रूप में अपनी साख साबित करनी होगी। ये दोनों पार्टियां वैचारिक रूप से शिवसेना से अलग हैं।
उग्र हिंदुत्व के रुख को नरम करेगी शिवसेना?
विश्लेषक ने कहा, 'एक राष्ट्रीय पार्टी (कांग्रेस) के साथ समझौता होगा और यह देखना होगा कि उद्धव ठाकरे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को उन्हें समर्थन देने के लिए कैसे समझा पाएंगे। क्या वह उग्र हिंदुत्व के रुख को नरम करेंगे, जिसका सहारा शिवसेना लेती है या कोई समस्या खड़ी होगी, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा।' ठाकरे के लिए एक और चुनौती यह होगी कि क्या वह मुख्यमंत्री पद स्वीकार करेंगे। हालांकि पहली बार विधायक बने उनके बेटे आदित्य ठाकरे को शिवसेना के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश करने के लिए कुछ क्षेत्रों में लगातार मांग उठ रही है।
'बीजेपी कर सकती है सरकार गिराने की कोशिश'
राजनीतिक विश्लेषक ने यह भी कहा, 'अगर किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो शिवसेना पर संकट आ सकता है। यदि किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो मतभेद हो सकते हैं।' हालांकि उद्धव ठाकरे ने इस पूरे मामले में राजनीतिक बुद्धिमता और परिपक्वता का परिचय दिया है पर बीजेपी चुप नहीं बैठेगी और शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार को गिराने की कोशिश कर सकती है।
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20 साल पहले राजनीति में आने को इच्छुक नहीं थे उद्धव
विश्लेषक का कहना है कि करीब 20 साल पहले उद्धव ठाकरे को एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में देखा जाता था जो अपनी पत्नी रश्मि, पुत्रों आदित्य और तेजस के साथ आरामदायक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उद्धव ठाकरे, जिनके लिए फटॉग्रफी एक पैशन है, चौरंग नाम से एक विज्ञापन एजेंसी चलाते थे।
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बाल ठाकरे की मदद करते हुई राजनीतिक जीवन की शुरुआत
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, जिन्होंने अपनी मां इंदिरा गांधी की मदद करते हुए राजनीति शुरू की थी, की तरह उद्धव ठाकरे ने भी अपने पिता बाल ठाकरे की सहायता करते हुए राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। विश्लेषक के मुताबिक, महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षेत्र में नए घटनाक्रम के बीच, ठाकरे की पार्टी को सरकार बनाने के लिए ऐसिड टेस्ट का सामना करना पड़ेगा।
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