संशोधित मोटर वीइकल्स ऐक्ट के तहत भारी जुर्माने के प्रावधान से इंश्योरेंस कंपनियों को काफी फायदा हुआ है। इसके चलते मोटर कवर की मांग में भारी उछाल दिखी है। कई इंश्योरेंस कंपनियों ने बताया कि इंश्योरेंस के लिए पूछताछ और बिक्री बढ़ी है। IFFCO टोकियो जनरल इंश्योरेंस के एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट संजीव चौधरी ने कहा, 'इस महीने एजेंसी के साथ ऑनलाइनलिबर्टी जनरल इंश्योरेंस के सीईओ और होलटाइम डायरेक्टर रूपम अस्थाना ने बताया, 'पिछले महीने तो ऑनलाइन माध्यम से इन्क्वायरी दोगुनी हो गई थी।' चूंकि, थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कवर अनिवार्य है और इसके पहली बार इसके बगैर पकड़े जाने पर 2,000 रुपये का जुर्माना लगता है। यही गलती दोहराने पर 4,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। इसलिए इंश्योरेंस कवर की बिक्री में उछाल आना लाजिमी था। ऑनलाइन इंटरमीडियरी सिंबो इंश्योरेंस के को-फाउंडर और सीईओ अनिक जैन ने बताया, 'कई दोपहिया गाड़ियों के मामले में जुर्माने के मुकाबले प्रीमियम की रकम कम है।' पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने लॉन्ग-टर्म थर्ड पार्टी लायबिलिटी कवर अनिवार्य करने का आदेश दिया था। उसे पता चला था कि सड़क पर चलने वाली एक तिहाई से ज्यादा रजिस्टर्ड गाड़ियों का इंश्योरेंस कवर नहीं होता है। इसके लिए बड़े पैमाने दोपहिया गाड़ी मालिकों को जिम्मेदार माना गया, जो पहले साल के बाद पॉलिसी रिन्यू नहीं करवाते हैं। इंश्योरेंस रेगुलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Irdai) ने भी पिछले साल बीमा कंपनियों को नई गाड़ियों के लिए लॉन्ग-टर्म थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कवर ऑफर करने का निर्देश दिया था। अब संशोधित मोटर वीइकल्स ऐक्ट आने के बाद पॉलिसी रिन्यू करवाने से कतराने वाले गाड़ी मालिकों के पास बचने का कोई उपाय नहीं है।
क्या है प्रोसेस?
आप जटिल प्रक्रिया से परहेज करके आसानी से अपने थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कॉम्पोनेंट को रिन्यू करवा सकते हैं। IFFCO टोकियो जनरल इंश्योरेंस के संजीव ने बताया, 'इस तरह के मामले में कोई जांच-पड़ताल नहीं होती है और पॉलिसी तत्काल जारी कर दी जाती है।' लैप्स या ब्रेक-इन, कॉम्प्रिहेंसिव कवर के डैमेज एलिमेंट को रिन्यू करवाने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है, लेकिन बीमा कंपनियों और ऑनलाइन ऐग्रिगेटर्स के टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करने से यह काफी आसान हो गया है। कुछ साल पहले पॉलिसी के लिए इंश्योरेंस कंपनियों के एजेंट ग्राहक के पास गाड़ियों की जांच करते थे। इसमें काफी वक्त लगता था। सिंबो इंश्योरेंस के अनिक ने कहा, 'बीमा कंपनियां फिलहाल तीन मॉडल के हिसाब से कवर देती हैं। इनमें से पहले में बीमा कंपनियां 90 दिनों से अधिक का ब्रेक न होने पर गाड़ी की जांच की जरूरत नहीं समझतीं और यह प्रक्रिया आसानी से निपट जाती है।
पॉलिसी लैप्स होने के 90 दिनों के भीतर रिन्यू करने से एक और फायदा होता है कि आप टोटल नो-क्लेम बोनस (NCB) के हकदार होंगे। हालांकि, इस समयसीमा में किसी भी देरी का मतलब है, आप NCB का फायदा नहीं उठा पाएंगे। ब्रेक जितना लंबा होगा, प्रीमियम उतना अधिक देना होगा। कुछ बीमा कंपनियां जीरो डेप्रिसिएशन कवर या इंजन प्रोटेक्ट कवर जैसे उपयोगी ऐड-ऑन को उन गाड़ियों तक नहीं बढ़ाती हैं, जो लंबी अवधि तक बगैर कवर के होते हैं।
दूसरा सेल्फ-इंसेप्शन मॉडल है, जहां इंश्योरेंस लेने वाला ग्राहक बीमा कंपनियों के आधिकारिक ऐप या लिंक के माध्यम से जांच के लिए अपनी गाड़ी की तस्वीरें अपलोड करते हैं। अस्थाना ने बताया, 'लिंक ग्राहक के मोबाइल फोन पर भेजा जाता है। उन्हें बस विडियो रिकॉर्ड और अपलोड करना होता है। यह भविष्य में सबूत के रूप में काम करेगा।
पॉलिसीबाजारडॉटकॉम में मोटर इंश्योरेंस के बिजनस हेड सज्जन प्रवीण चौधरी के मुताबिक, 'रिकॉर्डेड विडियो दावे के निपटान के समय विवाद की संभावना को कम करता है।' इसका प्रक्रिया का मकसद निपटान के समय पहले से मौजूद नुकसान पर विवादों के लिए गुंजाइश कम करना है। संजीव कहते हैं, 'तीसरे पक्ष के दावों के मामले में विवाद पैदा नहीं हो सकता क्योंकि इस हालात में मोटर ट्राइब्यूनल फैसला लेता है।' एक बार निरीक्षण पूरा होने और प्रीमियम का भुगतान करने के बाद पॉलिसी जारी की जाती है।
फाइन प्रिंट पढ़िए
आमतौर पर गाड़ियों में मामूली डैमेज को इंश्योरेंस कंपनियां आपके ओन डैमेज प्रपोजल की समीक्षा करते वक्त इग्नोर करती हैं। हालांकि, इसमें अंतिम फैसला इंश्योरेंस कंपनी पर होता है, जो आपकी अंडरराइटिंग पॉलिसी के आधार पर इस बारे में निर्णय लेती है। चौधरी ने बताया, 'अगर आपकी गाड़ी में चार से अधिक डेंट हैं तो पॉलिसी प्रपोजल रिजेक्ट भी हो सकता है। इसी तरह से, एक बड़े डेंट या विंडशील्ड में एक क्रैक से भी पॉलिसी जारी किए जाने की संभावना घट सकती है।' एक बार पॉलिसी इश्यू होने पर एक्सक्लूजन और अन्य शर्तें कमोबेश रेगुलर पॉलिसी जैसी होती हैं। जैन ने बताया, 'इंस्पेक्शन के वक्त अगर पहले से कोई डैमेज गाड़ी में होता है तो उसे नई पॉलिसी में कवर नहीं किया जाता।' इसलिए पॉलिसी खरीदते वक्त गाड़ी के पिक्चर या विडियो के जरिये उसकी कंडीशन का रिकॉर्ड रखना चाहिए।
इसके साथ, इस पर भी गौर करना चाहिए कि पॉलिसी किस तारीख से लागू हो रही है। कुछ मामलों में इसमें देरी हो जाती है। चौधरी ने बताया, 'ब्रेक-इन के मामले में थर्ड पार्टी कवर पॉलिसी T+1 या T+3 आधार (ट्रांजैक्शन के एक या तीन दिन बाद) लागू होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि कोई हादसे के बाद पॉलिसी न खरीद ले।'
आखिर में, किसी भी परेशानी से बचने के लिए पॉलिसी लैप्स होने की गलती न दोहराएं। इससे न सिर्फ आपको ऊंची पेनल्टी देनी पड़ती है बल्कि अगर हादसे में किसी अन्य शख्स को चोट या नुकसान होता है तो कार की कंपनसेशन पर भी असर पड़ सकता है। अपने हिस्से के डैमेज कॉम्पोनेंट को समझने के लिए आपको पॉलिसी को ध्यान से पढ़ना चाहिए।'
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