म्यांमार सीमा से सिर्फ़ 65 किलोमीटर पहले उत्तर-पूर्व के एक दूर-दराज़ के कोने में अनूठा बाज़ार लगता है.
इंफाल में इमा कैथल या मदर्स मार्केट को कम से कम 4,000 महिलाएं चलाती हैं. यह एशिया का या शायद पूरी दुनिया का ऐसा सबसे बड़ा बाज़ार है जिसे सिर्फ़ महिलाएं चलाती हैं.
लेकिन इमा कैथल की सबसे अनोखी बात यह नहीं है. बाज़ार चलाने वाली महिलाओं (जिन्हें इमा कहा जाता है) के नेतृत्व में यह बाज़ार मणिपुरी महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता का केंद्र है.
ऐसा क्यों है, इसे समझने के लिए यहां के अतीत के बारे में थोड़ी जानकारी ज़रूरी है.
यहां महिलाओं की चलती है
लकदक हरी पहाड़ियों से घिरे मणिपुर में कभी कंगलीपक साम्राज्य फला-फूला था, जो 33 ईस्वी से लेकर 19वीं सदी तक रहा. अंग्रेज़ी शासन ने इसे रियासत में तब्दील कर दिया.
मणिपुरी लोगों को बहुत कम उम्र से ही निडर योद्धाओं के रूप में प्रशिक्षित किया जाता था और उन्हें साम्राज्य की सीमा पर तैनात किया जाता था.
ज़िंदगी के बाकी सभी काम महिलाओं के हिस्से में थे. यही मणिपुर के समतावादी समाज की नींव में है, जो आज भी मौजूद है.
यहां सबका स्वागत है
मेहमानों के लिए इमा कैथल का माहौल दोस्ताना है. अगर कोई यहां की इमाओं से निजी तौर पर मिलना चाहे तो उसका भी स्वागत होता है.
एक महिला ने मेरा हाथ पकड़ लिया. उसने मेरी आंखों में झांककर देखा और स्थानीय मैतेई भाषा में प्यार से कुछ बोला, जिसका मतलब था, "मैं बहुत खुश हूं कि तुम यहां आए हो. शुक्रिया, शुक्रिया."
यहां आना एक सकारात्मक असर छोड़ता है, ख़ासकर इमाओं से मुलाक़ात और उनकी कहानियां सुनने के बाद, जिसके लिए वे हरदम तैयार रहती हैं.
दोस्ताना माहौल
इमाओं की ताक़त का अंदाज़ा उनके बैठने के तरीके और उनकी बॉडी लैंग्वेंज से ही लग जाता है.
वे ऊंचे प्लेटफॉर्म पर पैर मोड़कर बैठती हैं और अपनी जांघों पर कोहनी टिकाकर आगे को झुकी रहती हैं.
वे आने-जाने वालों से आंखें मिलाकर बातें करती हैं और मज़ाक करने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती. यहां पुरुष कम ही दिखते हैं.
यह बाज़ार तीन बड़ी दो-मंजिला इमारतों में लगता है, जिनकी छतें मणिपुरी शैली की हैं. यहां खाने-पीने की चीज़ों और कपड़े की दुकानें ज़्यादा है.
बाज़ार में हलचल कम हो तो यहां की इमाएं लूडो खेलती हुई दिखती हैं, जो उनका पसंदीदा टाइमपास खेल है.
प्रगतिशील बाज़ार
हाथ से बुने स्कार्फ और सरोंग के ढेर के बीच बैठी थाबातोंबी चंथम 16वीं सदी में इस बाज़ार की शुरुआत को याद करती हैं.
मणिपुर में मुद्रा के चलन से पहले इस बाज़ार में वस्तु विनिमय होता था. चावल की बोरियों के बदले मछली, बर्तन और शादी के कपड़े ख़रीदे जाते थे.
2003 में राज्य सरकार ने इमा कैथल की जगह एक आधुनिक शॉपिंग सेंटर बनाने की घोषणा की थी.
नई सदी में इस बाज़ार के लिए वह पहला मौका था जब यहां विरोध का झंडा बुलंद हुआ. इमाओं ने रात भर धरना दिया, जिसके बाद सरकार को अपनी योजना रद्द करनी पड़ी.
बाज़ार के ठीक बाहर
इमा कैथल की तीन इमारतों के ठीक बाहर सैकड़ों दूसरी महिलाएं बैठती हैं. वे फल, सब्जियां, जड़ी-बूटियां और सुखाई हुई मछलियां बेचती हैं, जो मणिपुरी खान-पान का अहम हिस्सा हैं.
मिर्च और सब्जियों को मसलकर तीखी चटनी इरोंबा बनाई जाती है. मछलियों के साथ उसकी गंध आसपास की गलियों तक फैली रहती है.
बाज़ार के बाहर बैठी इन महिलाओं के पास इमा कैथल में दुकान लगाने का लाइसेंस नहीं होता, इसलिए उनको चौकन्ना रहना पड़ता है.
चैंथम कहती हैं, "पुलिसवाले उनको गिरफ़्तार नहीं करते या जुर्माना नहीं लगाते, बल्कि वे उनके सामान को बिखेर देते हैं."
मैंने नालियों में कुछ ताजे दिखने वाले सेब देखे थे. हो सकता है कि वे ऐसे ही किसी झगड़े के सबूत हों.
सम्मान का प्रदर्शन
चैंथम मुझे बाज़ार की 4,000 महिलाओं के मुख्य संगठन ख्वैरम्बंद नूरी कैथल को चलाने वाली इमाओं से मिलाने को तैयार हो जाती हैं. वह ख़ुद भी इस संगठन की कार्यकारी सदस्य हैं.
एक बिल्डिंग की ऊपरी मंज़िल पर उनका दफ़्तर है. दरवाज़े के बाहर एक आदमी झपकी ले रहा है.
मंगोनगांबी तोंगब्रम नाम की एक इमा उसे जगने और जगह खाली करने का आदेश देती हैं. वह झटके से उठ खड़ा होता है और सिर झुकाकर माफ़ी मांगता है. यह सम्मानित व्यक्ति के प्रति सम्मान दिखाना है.
सशक्त आवाज़
60 साल की शांति क्षेत्रीमयम ख्वैरम्बंद नूरी कैथल की अध्यक्ष हैं. वह 4 बच्चों की मां हैं.
वह कहती हैं, "मुझे लोकतांत्रिक तरीके से 4,000 महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था. क्यों? मेरी सशक्त आवाज़ के कारण."
जब क्षेत्रीमयम बोलती हैं तो सभी इमाएं उनको सुनती हैं. वह साफ़ कर देती हैं कि इमाएं बाज़ार में और पूरे मणिपुर में कोई अंतर नहीं करतीं.
जो चीज़ राज्य के लिए अहम है, वे उसके लिए भी संघर्ष करती हैं. जब उनसे इमाओं के सबसे प्रमुख आंदोलन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने एक कहानी सुनाई.
1958 में उत्तर-पूर्व के अलगाववादी और बाग़ी शक्तियों को काबू में रखने के लिए भारत सरकार ने सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) क़ानून यानी अफ़्सपा बनाया था.
इससे यहां के अर्धसैनिक संगठन असम राइफ़ल्स को विशेष अधिकार मिल गए. उसने अफ़्सपा क़ानून को गोली मार देने का लाइसेंस समझ लिया. उस पर इन अधिकारों के दुरुपयोग के कई आरोप लगे.
2004 तक असम राइफ़ल्स की 17वीं बटालियन इंफाल के कंगला क़िले में रहती थी.
यह कंगलीपक साम्राज्य के समय का महल है जो इमा कैथल से कुछ सौ मीटर दूर स्थित है. उन दिनों आम लोग उधर नहीं जा सकते थे.
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